Saturday, January 26, 2008

बहुत देर तक ज़ुझ्ता रहा चुब्ती सर्द बूंदों से, उस टहनी पे लटके रहने को, उस् पेड का रहने को।
वो पत्ता सोचता था, पेड उसे गिरने नही देगा।
उसने गिरते हुए फिर देखा वो जलजला...
अपने जैसे हजारों... वो सब्कैसब पेड के थे.

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