पीघलता कवास कुज रंग मेरी झोली मे भी भर गया;
बूंदों की सीर्हन, कुज सोते ख्वाब जगा गयी...
 शौक आइना आंखों मे फीर से सजा;
जाते जाते उजाले की डोर हाथ मे थमा गयी...
 मद्धम होती सांसों को रंग-ए-दज़ नए दे गयी;
थकते पांव में परिंदों की चुहल दे गयी...
 कुज नयी पुरानी उल्फत फीर  से तस्दीक कर गयी|
Saturday, June 2, 2007
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